एक जिद और बदल गई हजारों महिलाओं की तकदीर

रायपुर, 26 मई 2022/ बस्तर, ये नाम सुनते ही कुछ वर्ष पहले जेहन में सिर्फ एक ही बात आती थी, नक्सली घटनाएं। लेकिन बीते साढ़े तीन वर्षों में इस बस्तर में बहुत कुछ बदल गया है। यहां की फिजाओं में अब स्वावलंबन की बयार बह रही है। यहां की धरती वनोपज के रूप में सोना उगल रही है और इस सोने का मूल्य बस्तर की महिलाएं बखूबी समझने लगी हैं।

ऐसी ही कहानी है बस्तर ब्लाक के तारापुर गांव की रहने वाली द्रौपदी ठाकुर की। जिन्होंने बीते साढ़े तीन वर्षों में कर्जमाफी का लाभ उठाते हुए 6100 महिला किसानों को एक साथ लाकर खड़ा कर दिया और बना दिया ‘भूमगादी‘ महिला किसान उत्पादक संघ। यहां भूम का अर्थ है जमीन और गादी का अर्थ है जमीन से निकलने वाला पदार्थ। भूमगादी एफपीओ को ये समझ आ गया था कि आदिवासियों के पास कृषि और वन उत्पाद तो हैं, लेकिन वो इन्हें बेचने में सक्षम नहीं हैं। आज बकावण्ड में भेंट-मुलाकात कार्यक्रम के दौरान द्रौपदी ने मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल से अपने संघर्ष और सफलता का किस्सा साझा किया।

द्रौपदी ठाकुर ने बताया कि महिला किसानों को संगठित करने का जिम्मा उन्होंने उठाया और नजदीकी तीन जिलों के 9 विकासखंडों में 6100 महिला किसानों को एकजुट किया। ये महिला किसान अपने-अपने गांवों में जाकर कृषि एवं वन उत्पादों को समर्थन मूल्य पर खरीदते हैं। ‘भूमगादी‘ संगठन किसानों से इमली, कोदो-कुटकी, हल्दी, मिर्ची समर्थन मूल्य पर खरीदता है। फिर वैल्यू एडिशन और पैकेजिंग कर जगदलपुर के हरियाली बाजार में ले जाकर बड़े व्यापारियों को बेचते हैं। इससे किसानों को उनके उपज की सही कीमत मिलती है और महिला किसानों को मुनाफे का लाभांश भी मिल जाता है।

द्रौपदी ठाकुर ने बताया कि महिला भूमगादी किसान उत्पादक संघ ने पिछले वर्ष में साढ़े चार करोड़ रूपए के प्रोडक्ट बाजार में बेचे हैं, जबकि बीते साढ़े तीन वर्षों में हमारा कुल टर्नओवर लगभग 10 करोड़ रूपए का हो चुका है। महिलाओं के इस किसान उत्पादक संघ के पास खुद का 5 टन का कोल्ड स्टोरेज है, जिसमें वो अपने उत्पादों को लंबे समय तक सुरक्षित रख सकती हैं। भूमगादी महिला स्व-सहायता समूह के ब्रांडनेम ‘हरियर बस्तर’ को आईएसओ का दर्जा भी मिला हुआ है। द्रौपदी ठाकुर के साथ ही 6100 महिला किसानों की इस उपलब्धि को सुनकर मुख्यमंत्री ने उन्हें बधाई और शुभकामनाएं दी।

छत्तीसगढ़ की भूपेश बघेल सरकार ने आदिवासी क्षेत्रों में आर्थिक सशक्तीकरण लाने के लिए लघु वनोपजों की संख्या 7 से बढ़ाकर 65 कर दी है। वनधन योजना की शुरू कर आदिवासी विकासखंडों में लघु वनोपजों के प्रसंस्करण केंद्रों की शुरूआत की। इसका फायदा ये हुआ कि घरों में रहने वाली आदिवासी महिलाओं को संबल मिला और वो घरों से निकलकर उद्यमी के रूप में खुद को स्थापित करने लगीं। बस्तर की उपजाऊ धरती में एक तरफ जहां ग्रामीण वनों को संरक्षित और सुरक्षित रखने की मुहिम चला रहे हैं वहीं महिला किसानों का उत्पादक संघ पूरे देश में महिलाओं के स्वावलंबन और आर्थिक सशक्तीकरण का बड़ा उदाहरण पेश कर रहा है।