भाजपा के इशारे पर “बी“ टीम के कुतर्क झीरम के शहीदों का अपमान है

रायपुर/08 नवंबर 2021। छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता सुरेंद्र वर्मा ने कहा है कि जब जब भाजपा संकट में आती है, “बी“ टीम बचाव की मुद्रा में आ जाती है। अंतागढ़ के षड्यंत्रकारी बेनकाब हो चुके हैं, अब झीरम की बारी है। और यही कारण है कि भाजपा के इशारे पर उनकी “बी“ टीम कुतर्क और बचाव की मुद्रा में आ गई हैं। सरकार का तात्पर्य कैबिनेट से होता है ना कि राज भवन। गृह राज्यसूची का विषय है, न्यायिक कमेटी का गठन राज्य सरकार के द्वारा किया गया है। उक्त रिपोर्ट पर निर्णय और कार्यवाही का अधिकार भी राज्य सरकार को है न कि राजभवन को। समान्य प्रशासन विभाग द्वारा जारी अधिसूचना में स्पष्ट अंकित है कि कमेटी को अपनी रिपोर्ट सरकार को ही सौंपना है, फिर किसके इशारे पर राज्य सरकार को बाईपास किया गया?

प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता सुरेंद्र वर्मा ने कहा है कि जस्टिस प्रशांत मिश्रा की एकल कमेटी सुरक्षा में चूक की खामियों के जांच के लिए गठित की गई थी ना कि हत्या और षड्यंत्र के लिए हत्या और संयंत्र की जांच पर एनआईए ने जांच करके चालान पेश किया और अब सरकार बदलने के बाद एसआईटी गठित किया गया है। पीड़ित परिवारों के द्वारा एफआईआर दर्ज कराई गई है साथ ही न्यायालय में पीआईएल भी दाखिल किया गया है। पीड़ितों का आरोप है कि कमिटी द्वारा हमले में घायलों का बयान तक नहीं लिया गया। यूनिफाइड कमांड के अध्यक्ष तत्कालीन मुख्यमंत्री रमन सिंह और उपाध्यक्ष तत्कालीन गृह मंत्री ननकीराम कंवर थे यदि कोई चूक हुई है तो जिम्मेदारी भी उन्हीं की थी। उनका बयान तक नहीं लिया गया। सुरक्षा में चूक के संदर्भ में वर्तमान कैबिनेट या कोई मंत्री जिम्मेदार कैसे हो सकते हैं? अतः अमित जोगी का कुतर्क निराधार है साथ ही जिस प्रकरण का संदर्भ दे रहे हैं वह भी अप्रासंगिक है।  

झीरम मामले में गठित न्यायिक आयोग सुरक्षा मानकों में चुक के संदर्भ में जांच के लिए है जबकि बीजेपी के “बी“ टीम के द्वारा जिस प्रकरण का हवाला दिया जा रहा है वह राज्य सरकार के भ्रष्टाचार से संबंधित आरोप पर आधारित है। मूल सवाल यही है कि जब राज्य सरकार के सामान्य प्रशासन विभाग के नोटिफिकेशन पर आयोग का गठन हुआ जिसमें स्पष्ट रूप से कहा गया था कि समय सीमा के भीतर जांच पूरी कर सरकार को रिपोर्ट सौंपनी है फिर पीड़ित परिजनों और सरकार से परदेदारी क्यों? 9 बिंदुओं पर जांच करने में 8 साल से अधिक समय लग गए। पर 8 नए महत्त्वपूर्ण बिंदुओं पर जांच 3 माह के भीतर अचानक पूरा कैसे? वह भी घायलों और तात्कालिक यूनिफाइड कमांड के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष की गवाही के बिना?

भाजपा का रवैया आरंभ से ही जांच को बाधित करने, जांच की दिशा को भटकाने और एसआईटी को जांचे से रोकने की रही है। पीड़ित परिवारों को न्याय का इंतजार है। छत्तीसगढ़ की जनता भी जानना चाहती है कि झीरम के राजनैतिक नरसंहार के प्रमुख षडयंत्रकारी कौन हैं? आखिर पीड़ित परिवारों और राज्य सरकार को सच जानने का अधिकार क्यों नहीं है?