रायपुर, 25 मई 2023/ग्रामीण अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ बनाने में गौठान कितना कारगर और सशक्त माध्यम बन सकता है, यह धमतरी जिले के भटगांव रीपा केन्द्र के महिला समूह से सीखा जा सकता है। इस जिले के धमतरी विकासखंड के सोरम-भटगांव में जय मां भवानी समूह न केवल लेमनग्रास की खेती कर रहा है, बल्कि वहां मशीन स्थापित कर लेमनग्रास से तेल भी उत्पादित कर रहा है। अब तक 85 लीटर लेमनग्रास तेल का उत्पादन कर और उसे बेचकर समूह को एक लाख दो हज़ार रुपए का मुनाफा हुआ है।
भटगांव सोरम के स्वसहायता समूह की महिलाओं ने अब मशीन से लेमनग्रास का तेल निकालने का काम शुरू कर दिया है। विदित हो कि महात्मा गांधी ग्रामीण औद्योगिक पार्क (रीपा) के तहत सोरम-भटगांव की 12 एकड़ बंजर भूमि को उपयोगी बनाने के लिए मनरेगा योजना और 14वें वित्त आयोग से भूमि सुधार किया गया। इसके बाद उद्यानिकी विभाग द्वारा समूह की महिलाओं को लेमनग्रास की खेती करने का प्रशिक्षण दिया गया और क्रेडा द्वारा सिंचाई व्यवस्था के लिए सोलर पम्प कनेक्शन दिया गया।
फलस्वरूप सोरम में नौ एकड़ और भटगांव में तीन एकड़ क्षेत्र में लेमनग्रास की खेती की जा रही है। पिछले ढाई साल से लेमनग्रास की खेती कर रही जय मां भवानी स्व सहायता समूह की अध्यक्ष श्रीमती किरणलता साहू बताती हैं कि पूर्व में उन्हें तेल निकलवाने के लिए निजी वेंडर पर निर्भर होना पड़ता था।
इससे वाहन का किराया और समय का नुकसान तो होता ही था, साथ ही प्रति एकड़ 30 हजार रूपए तक की ही आमदनी हो पाती थी। श्रीमती साहू ने आगे बताया कि भटगांव में लेमनग्रास से तेल निकालने का संयंत्र स्थापित हो जाने से अब उनकी आय में दुगना इजाफा हो गया है और प्रति एकड़ 40-50 हजार रूपए की आमदनी हो रही है। गौरतलब है कि भटगांव में स्थापित तेल निकालने की मशीन से एक बार में 600 किलो लेमनग्रास से चार लीटर तक तेल निकाला जा सकता है। यह तेल बहुत ही उपयोगी होता है। इसका उपयोग सौंदर्य प्रसाधन, मच्छर अगरबत्ती, साबुन इत्यादि बनाने में किया जाता है। बाजार में इस तेल का मूल्य 1200 से 1500 रूपए प्रति लीटर है।
उल्लेखनीय है कि भटगांव स्थित गौठान में बहुत सी गतिविधियां सफलतापूर्वक संचालित की जा रही हैं, जिसकी सराहना प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने 17 मई को यहां आयोजित भेंट मुलाकात कार्यक्रम के दौरान की थी। उक्त रीपा गौठान में लेमनग्रास के अलावा बहुआयामी गतिविधियों के तौर पर जैविक खाद निर्माण, बकरीपालन, मुर्गीपालन, मशरूम उत्पादन, अचार बिजौरी निर्माण, गोमूत्र से जैविक दवा निर्माण, सब्जी उत्पादन, छत्तीसगढ़ी व्यंजन पर आधारित दीदी की रसोई आदि का यहां संचालन सफलतापूर्वक किया जा रहा है। इन रोजगारमूलक नवाचारों से निश्चित तौर पर ग्रामीण अर्थव्यवस्था सशक्त और स्वावलंबी हुई है।