संत कबीर दास जन्मोत्सव पर विशेष

10 जून 2025, रायपुर : संत कबीर का जन्म 1398 ईस्वीमें हुआ था, लेकिन उनके विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं। आज उनके जन्मोत्सव के अवसर पर प्रस्तुत है संत कबीर के कुछ दोहे एवं अन्य जानकारी.

कौन थे संत कबीर?

संत कबीर दास मध्यकालीन भारत के एक महान संत, कवि और समाज सुधारक थे। उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता, ईश्वर भक्ति और सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ अपनी रचनाओं के माध्यम से आवाज उठाई। उनकी शिक्षाएं आज भी लोगों को प्रेरणा देती हैं।

कबीर जयंती कैसे मनाई जाती है?

भजन-कीर्तन: कबीर पंथियों द्वारा उनके दोहों और भजनों का गायन किया जाता है।
सत्संग: उनके विचारों पर चर्चा की जाती है।
समाज सेवा: कई संस्थाएं रक्तदान शिविर, अन्नदान और गरीबों की मदद करती हैं।
प्रदर्शनी: कबीर की जीवनी और उनके सिद्धांतों पर प्रदर्शनियां लगाई जाती हैं।

आधुनिक युग में कबीर की प्रासंगिकता

आज के दौर में जब समाज धर्म, जाति और वर्ग के नाम पर बंटा हुआ है, कबीर का संदेश और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। उनकी शिक्षाएं हमें सिखाती हैं कि ईश्वर एक है और वह हर इंसान के दिल में बसता है।

रायपुर में कार्यक्रम

रायपुर के कबीर चौक, कबीर मठ और विभिन्न सांस्कृतिक केंद्रों पर आज विशेष सत्संग और भजन संध्या का आयोजन किया गया है। स्थानीय प्रशासन ने भी इस दिवस को धूमधाम से मनाने के लिए तैयारियां की हैं।

बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय॥

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय॥

साईं इतना दीजिए, जा में कुटुंब समाय।
मैं भी भूखा न रहूं, साधु न भूखा जाय॥

दुख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे, तो दुख काहे को होय॥

माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर।
कर का मनका छोड़ के, मन का मनका फेर॥

जहाँ दया तहाँ धर्म है, जहाँ लोभ तहाँ पाप।
जहाँ क्रोध तहाँ काल है, जहाँ क्षमा तहाँ आप॥

प्रेम न बाड़ी उपजै, प्रेम न हाट बिकाय।
राजा प्रजा जेहि रुचै, शीश देय लैय जाय॥

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मोको कहाँ ढूंढे रे बन्दे, मैं तो तेरे पास में।
ना मैं मंदिर, ना मैं मस्जिद, ना काबे कैलास में॥

जिन खोजा तिन पाइयाँ, गहरे पानी पैठ।
मैं बौरी डूबन डरी, रही किनारे बैठ॥