रायपुर, 02 अगस्त 2025:इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के आणविक जीवविज्ञान एवं जैव प्रौद्योगिकी विभाग में आयोजित पाँच दिवसीय “बाँस के टिशू कल्चर के माध्यम से सूक्ष्म प्रजनन पर क्षमता निर्माण प्रशिक्षण कार्यक्रम” का आज यहां समापन हुआ। समापन समारोह के मुख्य अतिथि इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल थे। समारोह की अध्यक्षता कृषि महाविद्यालय रायपुर की अधिष्ठाता डॉ आरती गुहे ने की।
यह कार्यक्रम युवा शोधकर्ताओं, तकनीकी कर्मचारियों और स्नातकोत्तर छात्रों के बीच बाँस सूक्ष्मप्रजनन की व्यावहारिक दक्षता और वैज्ञानिक समझ को बढ़ाने हेतु डिज़ाइन किया गया था। कुल 20 प्रतिभागियों ने प्रशिक्षण में भाग लिया, जिनमें आईजीकेवी के विभिन्न केंद्रों से 12 वैज्ञानिक और तकनीशियन तथा विभाग के आठ छात्र शामिल थे। समापन सत्र का आरंभ अतिथियों के स्वागत के साथ हुआ, इसके बाद आयोजन सचिव डॉ. ज़ेनू झा द्वारा प्रशिक्षण का विस्तृत प्रतिवेदन प्रस्तुत किया गया।
उन्होंने सत्रवार गतिविधियों, प्रतिभागियों की सहभागिता और प्रमुख उपलब्धियों को रेखांकित किया। रिपोर्ट में पाँच दिनों के संरचित शिक्षण की झलक दी गई जिसमें एक्सप्लांट की तैयारी, शूट मल्टीप्लिकेशन, रूटिंग तकनीक, और अनुकूलन प्रोटोकॉल से लेकर संदूषण प्रबंधन और आणविक नैदानिक सत्रों तक का समावेश था। प्रतिभागियों ने प्रशिक्षण को लेकर सकारात्मक फीडबैक साझा किया और विशेष रूप से डॉ. श्याम सुंदर शर्मा, टेरी (नई दिल्ली) द्वारा वाणिज्यिक सूक्ष्मप्रजनन पर आयोजित सत्र को प्रशिक्षण का मुख्य आकर्षण बताया।
डॉ. आरती गुहे, अधिष्ठाता, कृषि महाविद्यालय, रायपुर ने प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए इस प्रकार के कार्यक्रमों को अकादमिक सीमाओं से आगे बढ़ाकर प्रयोगात्मक स्तर पर लागू करने की आवश्यकता पर बल दिया गया। कुलपति डॉ. गिरीश चंदेल ने प्रतिभागियों की वैज्ञानिक तत्परता और प्रतिबद्धता की सराहना करते हुए कार्यक्रम का समापन भाषण दिया।
उन्होंने बाँस सूक्ष्मप्रजनन को बढ़ाने के लिए संस्थागत समर्थन जारी रखने का आश्वासन भी दिया और विभाग को राष्ट्रीय बाँस मिशन जैसे राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के अनुरूप प्रशिक्षण आयोजित करने के लिए बधाई दी। कार्यक्रम का समापन डॉ. सुनील कुमार वर्मा द्वारा प्रस्तुत धन्यवाद ज्ञापन और प्रमाण पत्र वितरण के साथ हुआ। समापन समारोह ने हरित जैवप्रौद्योगिकी और सतत कृषि के क्षेत्र में कृषि विश्वविद्यालय की नेतृत्व भूमिका को पुनः प्रमाणित किया।
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