छत्तीसगढ़ की राजधानी में जुटेंगे देशभर से 1000 से अधिक चुनिंदा बुनकर, होगा नवीनतम नवाचारों पर मंथन

रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में स्थित जैनम् भवन में सहकार भारती के बुनकर प्रकोष्ठ का प्रथम राष्ट्रीय अधिवेशन आगामी 23 व 24 अगस्त 2025 को आयोजित किया गया है। इसकी जानकारी सहकार भारती के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. उदय जोशी ने प्रेस से साझा करते हुए दी। उन्होंने बताया कि, संयुक्त राष्ट्र महासभा ने सतत विकास में सहकारी समितियों की महत्वपूर्ण भूमिका को रेखांकित करते हुए वर्ष 2025 को अंतर्राष्ट्रीय सहकारिता वर्ष घोषित किया हैं।

डॉ. उदय जोशी ने कहा कि, सहकार भारती देश का एकमात्र ऐसा स्वयंसेवी संगठन है जो ‘बिना संस्कार नहीं सहकार – बिना सहकार नहीं उद्धार’ के ध्येय को लेकर सहकारिता क्षेत्र में सक्रिय है। सहकारिता के क्षेत्र में सुसंस्कारित व ऊर्जावान सहकारी कार्यकर्ताओं का निर्माण, सहकारी समितियों में प्रतिनिधित्व, सहकारी समितियों की समस्याओं का समाधान, सहकारी समितियों के सम्मेलन/अधिवेशन का आयोजन सहकार भारती की प्राथमिकता है। संगठन अपने विभिन्न प्रकोष्ठों के माध्यम से 28 प्रदेशों के 650 से अधिक जिलों में सक्रिय है।

अभी हाल ही के वर्षों में देश के अलग अलग स्थानों पर सहकारी क्षेत्र के आई टी, मत्स्य, क्रेडिट सोसायटी, महिला सहकारिता, पैक्स, गृह निर्माण, एफपीओ, डेअरी प्रकोष्ठों के अखिल भारतीय स्तर पर राष्ट्रीय अधिवेशन सफलतापूर्वक संपन्न हो चुके हैं।

इसी कड़ी में सहकारी बुनकर प्रकोष्ठ का 23 व 24 अगस्त 2025 को दो दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन जैनम् मानस भवन, रायपुर (छत्तीसगढ़) में आयोजित हैं। जिसमें देशभर से 1000 से अधिक सहकारी कुशल बुनकर प्रतिनिधि सम्मिलित होंगे।

भारत में बुनकरी एक प्राचीन और गौरवशाली परंपरा रही है। आज भी लाखों परिवार इस व्यवसाय से जुड़े हैं लेकिन बाजार, तकनीक और पूंजी की समस्याओं के चलते बुनकर आर्थिक रूप से संघर्ष कर रहे हैं। हस्तकरघा की स्थिति में सुधार के बिना बुनकरों का हित संभव नहीं है। इसलिए बुनकर आयोग का गठन आवश्यक ही नहीं अपितु अत्यंत महत्वपूर्ण है। सहकार भारती का बुनकर प्रकोष्ठ इस दिशा में एक सशक्त माध्यम बन सकता है।

राष्ट्रीय बुनकर अधिवेशन के विभिन्न सत्रों में बुनकर उद्योग की वर्तमान चुनौतियों एवं भविष्य की संभावनाओं के साथ इस क्षेत्र में नवीनतम नवाचारों पर बुनकर विशेषज्ञों का मार्गदर्शन होगा। इस कार्य को निश्चितरूप से गति मिलेगी और सहकार से समृद्धि का मार्ग प्रशस्त होगा।

इस अधिवेशन में प्रमुखरूप से सहकार भारती के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. उदय जोशी, राष्ट्रीय महामंत्री दीपक कुमार, राष्ट्रीय संगठन मंत्री संजय पाचपोर, सहकार भारती के संस्थापक सदस्य व रिजर्व बैंक के संचालक सतीश मराठे व बुनकर प्रकोष्ठ के राष्ट्रीय संयोजक अनंत कुमार मिश्र सहित अन्य सहकार भारती के केंद्रीय पदाधिकारी पूर्ण समय रहेंगे।

इस बुनकर अधिवेशन में केंद्रीय कपड़ा मंत्री गिरिराज सिंह, केन्द्रीय एमएसएमई मंत्री जीतनराम मांझी, प्रदेश के महामहिम राज्यपाल रमेन डेका, प्रदेश के मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय, विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह व प्रदेश के सहकारिता मंत्री केदार कश्यप जी विशेष रूप से इस अधिवेशन में उपस्थित रहेंगे। सहकार भारती तथा छत्तीसगढ़ प्रदेश के मुख्यमंत्री की ओर से केन्द्रीय सहकारिता मंत्री अमित शाह को आमंत्रित किया गया है,  इस अधिवेशन में उनके आने की पूरी संभावना है।

इस अधिवेशन की समुचित व्यवस्था के लिए प्रदेश के महामंत्री कनिराम जी के साथ प्रदेश की कार्यकारिणी, अधिवेशन के संयोजक सुरेन्द्र पाटनी, अधिवेशन सह संयोजक पुरुषोत्तम देवांगन, कार्यालय मंत्री सौरभ शर्मा व अधिवेशन व्यवस्था प्रमुख अजय अग्रवाल सहित अधिवेशन की विभिन्न व्यवस्थाओं के प्रमुख व उनकी टोलियाँ बनाई गई है।

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हस्तकरघा बुनकरों की चुनौतियाँ और “वोकल फॉर लोकल “के माध्यम से समाधान की ओर एक कदम सहकार भारती बुनकर प्रकोष्ठ का

भारत की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर में हस्तकरघा और बुनकरी की कला का विशेष स्थान है। किंतु आज के समय में यह पारंपरिक व्यवसाय अनेक चुनौतियों का सामना कर रहा है, जिससे न केवल बुनकरों की आजीविका पर प्रभाव पड़ रहा है, बल्कि इस अनमोल विरासत के अस्तित्व पर भी संकट मंडरा रहा है।

मुख्य चुनौतियाँ

आय की अनिश्चितता : अधिकांश बुनकरों की मासिक आय इतनी कम है कि वे अपने परिवार की आवश्यकताओं को भी पूरा नहीं कर पाते। नई पीढ़ी के युवाओं में इस बुनकरी कार्य के प्रति आकर्षण की कमी के कारण उदासीनता बढ़ती जा रही है। केवल 15% बुनकरों को ही औपचारिक रूप से कर्ज मिल पाता है, जिससे उन्हें पूंजी की गंभीर समस्या का सामना करना पड़ता है। उत्पादों की बिक्री में बिचौलियों की भूमिका के कारण बुनकरों को उचित मूल्य नहीं मिल पाता।

डिजिटल दुनिया से दूरी भी एक महत्वपूर्ण विषय है :  मात्र 19% बुनकर ही डिजिटल माध्यम से अपने उत्पाद बेच पा रहे हैं, जिससे उनका बाजार सीमित हो जाता है।

“लोकल फॉर वोकल” एक नई आशा की किरण

प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा आरंभ की गई “लोकल फॉर वोकल” पहल का उद्देश्य स्वदेशी उत्पादों को प्रोत्साहित करना है। यह पहल हस्तकरघा बुनकरों के लिए एक बड़ा अवसर है जिससे उन्हें आर्थिक, सामाजिक तथा तकनीकी रूप से सशक्त बनाया जा सकता है।

इस पहल के संभावित लाभ 

सीधा बाजार संपर्क : बुनकरों को अपने उत्पादों के लिए प्रत्यक्ष रूप से बाजार तक पहुंच मिलेगी।

डिजिटल उपस्थिति : डिजिटल प्लेटफॉर्म्स के माध्यम से वे अपने उत्पादों को देश-विदेश के ग्राहकों तक पहुँचा सकेंगे।

स्वदेशी उत्पादों को बढ़ावा : देश में हस्तशिल्प और स्वदेशी उत्पादों की मांग को बढ़ावा मिलेगा।

हस्तकरघा उद्योग के सशक्तिकरण हेतु संभावित कदम

1.  प्रभावी मार्केटिंग व्यवस्थाएं :

  ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म से जुड़ाव

  सोशल मीडिया व डिजिटल मार्केटिंग के माध्यम से प्रचार

  स्थानीय व राष्ट्रीय स्तर पर मेले और प्रदर्शनी

  स्थानीय दुकानों और बाजारों के साथ साझेदारी

2. सरकारी योजनाएं एवं सहयोग :

  बिहार टेक्सटाइल एवं लेदर पॉलिसी 2022 : राज्य सरकार द्वारा बुनकरों के लिए विशेष नीतियाँ  चलाई जा रही हैं।

  कार्यशील पूंजी योजनाएं : किफायती ब्याज दर पर ऋण की सुविधा।

तकनीकी प्रशिक्षण और सहायता : आधुनिक तकनीकों का प्रशिक्षण एवं उत्पादन की गुणवत्ता में सुधार।

  बाजार उपलब्धता : उत्पादों को सही मूल्य पर बेचने के लिए सरकार द्वारा बाजार उपलब्ध कराया जा रहा है।

3.  सहयोगी संस्थाओं की भूमिका :

  स्थानीय बुनकर समितियाँ : बुनकरों को संगठित करने और सामूहिक रूप से विपणन करने के लिए।

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  सरकारी एजेंसियाँ : बुनकरों के उत्पादों को बढ़ावा देने और राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय बाजारों से जोड़ने हेतु।

निष्कर्ष :

हस्तकरघा केवल रोजगार का साधन नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक पहचान है। सरकार, संस्थाओं और समाज के सहयोग से यदि इसे सही दिशा और संसाधन मिले, तो यह न केवल लाखों बुनकर परिवारों को आत्मनिर्भर बना सकता है, बल्कि भारत की सांस्कृतिक पहचान को वैश्विक स्तर पर सशक्त भी कर सकता है।

“हस्तकरघा बुनकरों को सशक्त बनाएं, भारत की विरासत को बचाएं।”