संगीत सम्राट रायगढ़ नरेश राजा चक्रधर सिंह जी को भारत सरकार द्वारा सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न दिया जाए : डॉ. कृष्ण कुमार सिन्हा

राजनांदगांच छत्तीसगढ़। आज से 90 वर्ष पूर्व 20 से 40 के दशकों में जनजातिय चनवासी, आदिवासी राजा चक्रबर सिंह ने मात्र 45 वर्ष का अल्पआयु में ही अपने 23 वर्षों के शारान काल में साहित्य एवं संगीत नृत्य के क्षेत्र में अतुलनीय योगदान दिया है। बनवासी आदिवासी राज्य रायगढ़ में 1924 से 1947 तक छत्तीसगढ़ जैसे पिछड़ा वर्ग क्षेत्र में कला संस्कृति च साहित्प को प्रयाह का केन्द्र बिन्दू रायगढ़ दरबार ही रहा है। अपने पिता महाराजा भूषदेव सिंह जी से कला संस्कृति विरासत में पाकर विलक्षण प्रतिभा के धनी राजा चक्रधर सिंह संगीत और नृत्य के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया।

पैसे तो यह संगीत की तीनों दिया गायन, वादन और तुत्य के थे। उन्होंने रोगीत नृत्य और साहित्य को के अपने इष्टदेव मानते थे और उन्होंने अपने दरबार को मां सरस्वती का पवित्र मंदिर मानते थे और राजा चक्रधर सिंह एक धर्म निरपेक्ष राजा थे और सभी धर्मों का सम्मान किया करते थे। महाराज चक्रधर सिंह संस्कृत, हिन्दी, ब्रज, उर्दू और अंग्रेजी भाषा साहित्य के विद्वान ही नहीं बल्कि उच्चकोटि के रचनाकार भी थे और हिन्दी में बलपिया के नाम से और उर्दू में फरहत के नाम से रचना करते थे। उन्होंने चक्रपिया के नाम से दुगरी, भजन, बंदिशों आदि अनेकों रचनाओं का भी सूजत किया।

राना साहय एक अच्छे कुशल ताण्डव नृत्य अंग के जानकार भी थे। राजपद के कारण प्रदर्शन में भाग नहीं लेते थे और यही कारण है कि उन्होंने अनेकों नृत्य बंदिशों की रचना किए और रायगढ़ दरबार नृत्य परंपरा की समृद्धशाली किये। उन्होंने केवल बंदिशों की ही रचना नहीं किये बल्कि कथक नृत्य के शास्त्र पक्ष को भी मजबूती प्रदान किये और नृत्य जगत को नर्तन सर्वश्थम एवं मुरज पर्ण पुष्पाकर नामक ग्रंथ की रचना कर विश्व पटल में अपना नाम अंकित किये और यह दोनों ग्रंथ कथक नृत्य का समृद्धशाली शारत्र एवं प्रायोगिक पक्ष की नजबूती प्रदान किये है। राजा साहय नृत्य के जानकार होने के साथ साथ वह संगीत (गायन) तबला व पखावज के भी अच्छे जानकार थे और यहीं कारण है कि उन्होंने संगीत के लिए हजारों राग रागिनियों की रचना किये बल्कि राग रत्न मंजूषा ग्रंथ की रचना किये और साथ ही ताल तोए निधी ग्रंथ की रचना किये। तालबल पुष्पांकर नामक तबला और पखावज के लिए उन्होंने ताल तोए निधी ग्रंथ की रचना किए। वो कि 32 (बत्तीस) किलो का वजनी ग्रंथ है।

ज्ञात हो कि राजस्थान और लखनऊ जैसे वैभवशाली राजा और नवाबों के चाद छत्तीसगढ़ के वनवासी आदिवासीय गोड़ दूरदर्शी महाराना चक्रधर सिंह ने संगीत नृत्य में संस्थागत शिक्षण प्रणाली में प्रायोगिक के राथ साथ शास्त्र पक्ष को मजबूती से अपने ग्रंथों में स्थान देकर उन्होंने रानातन सांस्कृतिक संगीत नृत्य और साहित्य की यूजनकर संगीतिक परंपरा को समृद्धी प्रदान करते हुए शिक्षण, संरक्षण और संवर्धन कर कला जगत को अनुपम भेंट किये। आज इस प्रेस विज्ञप्ति के माध्यम से राजा चक्रधर सिंह जी के नाम से बिगत 43 वर्षों से स्थापित मध्य भारत एवं छत्तीसगढ़ का प्रथम स्नातक संगीत महाविद्यालय चक्रधर कत्थक कल्याण केन्द्र राजनांदगांवा (छ.ग.) के संस्थापक डॉ. कृष्ण कुमार सिन्हा यह अपील करते है कि राजा चक्रधर सिंह जी को भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न सम्मान देने हेतु भारत सरकार को अनुशंसा करने की आप सभी महानुभवों से सादर अपील करते है। उपरोक्त प्रेस विज्ञप्ति संस्था के तुषार सिन्हा ने दी।

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