नई दिल्ली(PIB) : कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) की मिनीरत्न सहायक कंपनी, साउथ ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड (एसईसीएल) ने चल रहे विशेष अभियान 5.0 (स्वच्छता ही सेवा) के अंतर्गत ऑपरेशन सिंदूर को भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए एस-400 मिसाइल लांचर प्रणाली और एक रोबोट सैनिक का भव्य मॉडल तैयार किया है, जो पूरी तरह से औद्योगिक कबाड़ से बनाया गया है।
गेवरा स्थित केंद्रीय उत्खनन कार्यशाला (सीईडब्ल्यूएस) द्वारा विकसित यह आकर्षक कलाकृति, एसईसीएल की विशिष्ट पहल “कबाड़ से कलाकृति” के माध्यम से “अपशिष्ट से धन” अभियान के दृष्टिकोण को साकार करती है। यह भारत की रक्षा शक्ति, तकनीकी प्रगति एवं पर्यावरणीय चेतना का प्रतीक है जो सभी बेकार सामग्रियों के रचनात्मक पुन: उपयोग से निर्मित है।
लगभग 800 किलोग्राम धातु के कबाड़ के उपयोग से निर्मित, जिसमें सर्वे किए गए चेसिस, इस्पात की नलियां और लोहे शामिल हैं, इस परियोजना को एसईसीएल के अधिकारियों, इंजीनियरों और तकनीशियनों की एक टीम द्वारा दस दिनों के अंदर पूरा किया गया। एस-400 प्रणाली और अत्याधुनिक रोबोटिक सैनिक मिलकर भारत की रक्षा तत्परता एवं नवाचार संचालित भविष्य की याद दिलाते हैं।
कबाड़ को देशभक्तिपूर्ण कला में परिवर्तित कर, एसईसीएल ने दर्शाया है कि किस प्रकार से औद्योगिक रचनात्मकता स्वच्छ भारत अभियान जैसे राष्ट्रीय अभियानों का पूरक बन सकती है। यह पहल न केवल पुनर्चक्रण एवं सतत प्रथाओं को बढ़ावा देती है बल्कि कर्मचारियों एवं आगंतुकों में गर्व की भावना भी जगाती है।
एसईसीएल मुख्यालय और परिचालन क्षेत्रों में अपशिष्ट से कला प्रतियोगिताएं भी आयोजित की गईं जिससे कर्मचारियों और उनके परिवारों को बेकार पड़ी सामग्रियों को कलात्मक कृतियों में बदलने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके जिससे अपशिष्ट प्रबंधन, संसाधन दक्षता एवं वृत्तीय अर्थव्यवस्था के सिद्धांतों पर जागरूकता फैल सके।
प्रत्येक वर्ष एसईसीएल उत्साहपूर्वक “कबाड़ से कलाकृति” मनाता है, जिसमें कबाड़ को सार्थक कलाकृतियों में बदला जाता है जो स्वच्छता, स्थिरता एवं राष्ट्रीय गौरव के प्रति संगठन की अटूट प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
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विशेष अभियान 3.0 में, एसईसीएल के जमुना कोटमा क्षेत्र ने कबाड़ से विभिन्न प्रतिमाएं तैयार की थी और उनका एक सार्वजनिक पार्क में प्रदर्शन किया था जिसने देशव्यापी ध्यान आकर्षित हुआ था और विशेष अभियान 4.0 में कोरबा क्षेत्र ने पूरी तरह से औद्योगिक कबाड़ से गांधी प्रतिमा बनाई थी।