रायपुर, 16 नवंबर 2025। भारतीय दर्शन भेद विहीन दर्शन है। यह काला-गोरा, मोटा-पतला, स्त्री-पुरूष, बालक-बालिका में भेद नहीं करता। मौलिक दर्शन है आत्मा अजर, अमर, अविनाशी है। भारत के दर्शन में स्त्री पुरुष भेद सम्भव नहीं है क्योंकि परमात्मा एक है, बाकी हम सब आत्माएं उसमें से ही आयी हैं, उस परमात्मा की फोटोकॉपी है। भारतीय ज्ञान परंपरा में किसी भी प्रकार का भेद नहीं है।
यह बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक व मध्य क्षेत्र के प्रचार प्रमुख श्री कैलाश चन्द्र जी ने कही। वे छत्तीसगढ़ प्रान्त के भारतीय नारी विमर्श अध्येता समूह के ब्रेन स्ट्रॉमिंग सत्र को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि भारतीय तत्व ज्ञान हजारों वर्षो में हुई ऋषियों की रिसर्च पर आधारित है। भारत का ज्ञान लाखों वर्षों का प्रवाहमान समाज से आया है। यह पाश्चात्य की तरह एक या दो बुध्दिजीवियों द्वारा लिखी किताबें नहीं है। भारत को भारत रखने के लिए पश्चिम का अंधानुकरण नहीं करना है। भारत की नारियों का आदर्श भारत की ही नारियां हैं। हमें पश्चिम से आदर्श नहीं चाहिए
जिज्ञासा सत्र में श्री कैलाशचन्द्र जी मध्य क्षेत्र प्रचार प्रमुख ने उपस्थित लोगों के प्रश्नों के उत्तर दिए। सही जानकारी के लिए ब्रिटिश पीरियड के पहले की प्रकाशित पुस्तके, पाण्डुलिपियां और सामग्रियों पर जाना पड़ेगा। स्टडी सर्कल के उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए कैलाश जी ने कहा कि जो भारत का नहीं है, जो भारत के लिए नहीं है, हमें ऐसी खरपतवार नहीं चाहिए। आज से 2 हज़ार वर्ष पहले हम विश्व मे वस्त्र भेज रहे थे। बाद में 18वीं शताब्दी में यहां से केवल रुई मंगवाकर उसकी का कपड़ा बनाकर हमें बेचना शुरू कर दिया। अंगूठे से कई गज कपड़ा निकल जाता था। जब वो ऐसा कपड़ा नहीं बना पाए तो भारतीय कारीगरों के अंगूठे काट दिए गए। 60 हजार अंगूठे तो अकेले ढाका में कटे। पश्चिम ने हमारे दिमागों में चिपका दिया कि गोरा रंग काले रंग से अच्छा होता है। हमारे यहां सौंदर्य को लेकर बहुत रचना हुई है, कहीं भी रंग को लेकर या गोरा रंग होने को ही सुंदरता कहते हैं, ऐसा कहीं नहीं लिखा है।
भारतीय नारी विमर्श, अध्येता समूह छत्तीसगढ़ प्रान्त का विचार मंथन सत्र रविवार को सरस्वती शिक्षण संस्थान रोहिणीपुरम में आयोजित हुआ। जबलपुर से आईं नारी विमर्श की क्षेत्रीय संयोजिका डॉ नूपुर निखिल देशकर ने सत्र के प्रारंभ में विषय समझाते हुए कहा कि नारी और विमर्श दो बिंदु हैं। भारत मे आज प्रबुद्ध नारियों के बीच इस विमर्श की आवश्यकता क्यों पड़ी? जहां स्त्रियां शोषित थीं, वहां उन्होंने आवाज़ उठाई। शक्ति ही शिव का आधार है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों ही में उसकी समान भूमिका है। स्वतंत्रता पूर्व नारी विमर्श ने विकृत भाव पैदा किया। औपनिवेशिक स्वरूप ने इसे बिगाड़ा। विदेशी महिला साहित्यकारों के साहित्य ने भारतीय महिलाओं पर प्रभाव डाला। 1837 में पहली बार नारी विमर्श शब्द आया।1970 के बाद भारत के विश्वविद्यालयों में पश्चिम के साहित्यकारो को पढ़ाया जाने लगा। परिणामस्वरूप पितृसत्ता, लैंगिक उत्पीड़न जैसे विषयों पर बहस करने लगे।वैश्वीकरण व बाज़ारीकरण ने महिलाओं के स्वरूप को बिगाड़ा। नारी को उपभोक्ता व उत्पाद बनाया गया।बॉलीवुड ने भी स्त्रियों की छवि को बदल दिया। नारी अधिकारों की याचक नहीं, कर्तव्यों की शक्ति है।
छत्तीसगढ़ प्रान्त स्टडी सर्कल की संयोजक रश्मि राजपूत ने कहा कि वर्ष 2024 में अध्येता समूह का गठन किया गया है। वैदिक काल, बुद्ध काल, मुगल काल, ब्रिटिश काल और स्वाधीनता के बाद का कालखण्ड का अध्ययन किया जा है। भारतीय महिलाओं की संघर्ष की गाथा शामिल है।
भारत मे वैदिक कालीन स्त्री चेतना पर कबीरधाम से आईं श्रीमती नम्रता मोदी ने प्रस्तुति दी। श्रीमती गगन गोयल, नीता मिश्रा, कोंडागांव, गरियाबंद की विनीता शर्मा, सरोज देवांगन ने पॉवर पॉइंट प्रेजेंटेशन के माध्यम से विभिन्न कालखण्डों में स्त्रियों की दशा पर प्रकाश डाला।
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कार्यक्रम में छत्तीसगढ़ की प्रबुद्ध महिलाएं उपस्थित रहीं। संचालन विनीता शर्मा ने किया।

