रायपुर। छत्तीसगढ़ में एक नए राजनीतिक दल का उदय हुआ है, जिसके उद्देश्यों और सिद्धांतों पर रौशनी डालने के लिए पार्टी के संस्थापकों ने पत्रकार वार्ता में बताया कि छत्तीसगढ़ में 25वर्ष बाद जन आग्रह व जन भागीदारी के साथ नवीन राजनीति का उदघोष कर एक राजनैतिक पार्टी – जन चेतना भारत पार्टी- हम तीन साथी संस्थापक सदस्य के रूप में जसबीर सिंह चावला (बिलासपुर), जयंत गायधने (रायपुर) अभिषेक बाफना(महासमुंद) घोषणा करते है।
जनता के लिए ईमानदारी से मूलभूत सुविधाओं पर काम के लिहाज से जन चेतना गवर्नेंस का आगाज़ करते हुये हम संविधान में उल्लेखित जनता की मूलभूत सुविधाओं को अंतिम छोर के व्यक्ति तक पहुंचाने का निरंतर प्रयास करेंगे।यही हमारा सर्वोपरि उद्देश्य रहेगा।
आज राजनैतिक दलों का सरकार में आने पर वादे भूल जाना, जुमला कहना ,लाग लपेट कर जनता को भुला भटका देना एक साधारण सी बात हो गई है।जनता इसे अब साधारण मान बैठी है । सवाल है क्यों?
कथनी और करनी में हर योजना और कार्यों को लेकर अंतर पिछले 25वर्षों से लगातार बना हुआ है। जनता कुछ समय बाद भ्रम में परिवर्तन भी करती है लेकिन कोई समाधान नहीं निकलता है और थोड़ी सी हल्की फुल्की लीपापोती सिर्फ होती है। सीधी सादी जनता असहाय सी उस पीड़ा का घूट पीकर उम्मीद लगाये सिर्फ इंतजार करती रह जाती है लेकिन अब समाधान लाना होगा।
शराब एवं नशीले पदार्थ का सेवन अब इतना बढ़ गया है कि युवाओं के साथ अब स्कूल के बच्चे न सिर्फ शहरों में बल्कि दूर दराज के गांवों तक ये जाल फैल गया है और फल फूल रहा है। सरकार सिर्फ धरपकड़ की खानापूर्ति कर देती है।
पहले भ्रष्टाचार थाली में नमक बराबर से शुरू हुआ तो जन मानस उसे सहता चला गया अब असीमित भ्रष्टाचार आधी थाली से ऊपर चला गया है और गवर्नेंस के खर्चे के बाद तो थाली में दाल बराबर खर्चे से जनहित योजनाओं के कार्य निपटा दिये जाते है । तब आप ही सोचिए कि जनहित योजनाओं के कार्य गुणवत्ता वाले और दीर्घावधि उपयोग के लिये कैसे होंगे ? जनहित योजनाओं के कार्य जर्जर होना स्वाभाविक है।
हदें तो तब पार हो गई जब जनता के बच्चों का भविष्य तो छोड़ दीजिए जनता की जान के साथ खिलवाड़ कर पैसे कमाने की भूख नकली दवाइयां बांटकर की जाने लगी और जांच पर जांच बैठाकर खानापूर्ति हो रही है।क्या उन मातहतों की और सप्लाई करने वाली की कोई मानवता के नाते कोई जिम्मेदारी नहीं और चुनी हुई सरकार और विपक्ष मूक दर्शक बनीं हुई है। तुरंत और सीधी कार्यवाही क्यों नहीं होती है?
वहीं हाल मिलावटी खाद्यपदार्थ जैसे मिठाई,खाने का समान,मसाला, आटा ,चावल, पनीर,दूध आदि में नकली हानिकारक पदार्थ मिलने के बाद भी ,सीधे स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने वाले खाद्यान्न पकड़े जाते है लेकिन फिर वहीं जांच की खानापूर्ति और भ्रष्टाचार ! आम जनता क्या करे। महंगाई डायन वैसे ही हर व्यक्ति को लगातार डस ही रही है।
पर्यावरण प्रदूषण के रोकथाम के उपाय सिर्फ कागजों और फाइल में और जनता के लिए विज्ञापनों में सुशोभित है। शायद हम दिल्ली जैसा हाल होने तक इंतजार करेंगे।
गुंडागर्दी चरम पर पहुंच गई चाकूबाजी और लूटपाट, बेरोजगारी की वजह से नशे की लत और व्यापार ,अब एक आसान पैसे कमाने का जरिया बन रहा है। इसपर नकेल के लिए असाधारण सरकारी एवं जनप्रयास की आवश्यकता है।
बढ़ती बेरोजगारी से पलायन, नशे की लत, गरीबी, गुंडागर्दी , धार्मिक उन्माद चरम पर पहुंच गया है। बच्चों और युवा पीढी का भविष्य बर्बादी की ओर अग्रसर है।सरकारी आंकड़ों की बाजीगरी तो अच्छे अच्छों को आश्चर्य चकित कर देती है मानो बेरोजगारी है ही नहीं।
बदहाल शिक्षा,चरमराई स्वास्थ्य व्यवस्था, बढ़े बिजली के दाम,खराब गुणवत्ता की सड़क और उनका बारंबार रखरखाव ,पेयजल के अभाव में पाउच और बोतल बंद पानी ,शौचालय व बजबजाती नाली,नगरीय स्वच्छता, तालाबों के रखरखाव, जनसुरक्षा का खस्ता हाल अब और बेहाल होता जा रहा है। राजधानी में ही एक चक्कर लगा लीजिए पता चल जाएगा । प्रदेश के बाकी शहर व गांवों की स्थिति तो भगवान भरोसे है।यह सब कब सुधरेगा? अब छत्तीसगढ़ की जनता को सभी मूलभूत सुविधाएं बिना लीपापोती के एक साथ चाहिए।
शांत छत्तीसगढ़ में द्वेष पूर्ण और मिलीभगत की राजनीति की निरंतर बढ़ोतरी और सिर्फ आयोजन और विज्ञापनों की बाढ़ से ही जनमानस पूरी तरह पटा देखकर जनता ठगा सा महसूस कर रही है।
आदिवासियों के जल,जंगल व जमीन के अधिकारों में लगातार छलावा और अनैतिक अधिग्रहण और बेदखली से छत्तीसगढ़ में आदिवासी और आमजन त्राहिमाम कर रहा है ।सीधा सादा आदिवासी लगातार आंदोलन और प्रदर्शन करता रहता है लेकिन उसे किसी तरह दबा कर असहाय कर दिया जाता है, आखिर कब तक और क्यों ? क्या हमारे प्रदेश में आदिवासियों के साथ ऐसा करना तर्क संगत है? ये कुछ उद्योगपतियों की अधाधुंध कमाने की भूख ही है जो सरकारों को ऐसा करने को मजबूर कर रही है। हम उन्हें अच्छा स्वस्थ और शिक्षा देकर धीरे धीरे भी विकसित बना सकते है । रोजगार उन्मुखी सतत् प्रयास और शिक्षा उन्हें आत्मनिर्भर और विकसित बना सकती है।
किसान हमारा अन्नदाता है लेकिन अब भी सरकार खेती के उत्पाद का अच्छा व पूर्ण मूल्य तथा सहयोग देने में कोताही बरतने से बाज नहीं आती है जैसे आज का उत्पादन मूल्य पांच साल बाद तब तक मूल्य और बढ़ जाता है। किसान भाइयों की फरियाद लोन और साहूकार के ब्याज तले दबकर खत्म हो जाती है। इसका समाधान होना चाहिए ।
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प्रदेश की आर्थिक स्थिति बदस्तूर बिगड़ रही है,खजाने में पैसा नहीं की आवाजें सरकार के सूत्रों से ही आती रहती है ,लेकिन सरकारें आंकड़ों की बाजीगरी से 25वर्षों से जनता की आंखों में धूल झोंक कर और लोन पर लोन लेकर भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ा रही है और थोड़ी सी रेवाड़ी बांटकर चुनाव में वोट ले रही है ।
जनता को मुंगेरीलाल के सपने दिखा इंतजार करवा रही कि 25साल पहले ये था और 25साल बाद ये होगा। आज का क्या होगा ? या इस वर्ष क्या होगा? जनता भूल जाए बस।सिर्फ आयोजन और विज्ञापनों की चादर ओढ़ा दी जाती है। ये कैसी शासन व्यवस्था है? छत्तीसगढ़ को ये कबूल नहीं है अब हमन बदलबो छत्तीसगढ़ । सतत् ईमानदार प्रयास अब सर्वोपरि

