रायपुर, 11 दिसंबर 2025/ शहीद वीर नारायण सिंह जी का 168 वां बलिदान दिवस के अवसर पर अध्यक्ष छत्तीसगढ़ इतिहास परिषद एवं पूर्व विभाग अध्यक्ष इतिहास अध्ययन शाला प्रोफेसर (डॉ.) आभा रूपेंद्रपाल ने कहा कि वीर नारायण सिंह अंग्रेजी शासन के अत्याचार के विरुद्ध गरीबों, किसानों और वंचित समुदायों के अधिकारों की रक्षा के लिए खड़े हुए एक ऐसे वीर सपूत थे, जिन्होंने 1956 के भीषण अकाल के समय गरीबों में अनाज बांटकर मानवता की ऐतिहासिक मिसाल पेश की। इतिहास अध्ययन शाला पंडित रविंशकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर (छत्तीसगढ़) में कल शहीद वीर नारायण सिंह जी का 168 वां बलिदान दिवस मनाया गया, इस अवसर पर विभाग में एक परिचर्चा का आयोजन किया गया।
(डॉ.) आभा पाल ने कहा कि अंग्रेजों की गलत नीतियों के कारण जब किसान और उनके बच्चे भूखों मरने लगे तो यह बात वीरनारायण सिंह से सहन नहीं हुई। उन्होंने किसानों को संगठित करके अंग्रेजों का जमकर मुकाबला किया। शहीद वीर नारायण सिंह पर अंग्रेजों ने आरोप लगाया था कि उन्होंने गोदामो में भरे अनाज को लूटकर अपनी प्रजा में बंटवा दिया था। लेकिन यदि न्याय की बात की जाए तो उन्होंने अकाल के कारण दाने-दाने के लिए मोहताज हो रहे अपनी प्रजा तक उनके अधिकारों को पहुंचाया था। अंग्रेजी हुकूमत ने वीर सपूत नारायण सिंह के इस प्रजाहितैषी कार्य करते हुए किसानों को संगठित करके अंग्रेजों का जमकर मुकाबला किया। अंततः वे अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तार कर लिए गए और 10 दिसंबर 1857 को उन्हें रायपुर में फांसी दे दी गई।
कार्यक्रम की अध्यक्षता प्रोफेसर (डॉ.) आर के ब्रह्मे अध्यक्ष इतिहास अध्ययन शाला ने करते हुए कहा कि शहीद वीरनारायण सिंह सोनाखान के जमींदार थे। वे चाहते तो अंग्रेजों की जी.हुजूरी करते हुए सुविधापूर्ण और भोग विलास का जीवन जी सकते थेए लेकिन उन्होंने अन्याय के खिलाफ संघर्ष का मार्ग चुना। प्रमुख वक्ता प्रोफेसर रमेंद्र नाथ मिश्र पूर्व विभागाध्यक्ष इतिहास अध्ययन शाला ने कहा कि शहीद वीर नारायण सिंह पर अंग्रेजों ने आरोप लगाया था कि उन्होंने गोदामो में भरे अनाज को लूटकर अपनी प्रजा में बंटवा दिया था। लेकिन यदि न्याय की बात की जाए तो उन्होंने अकाल के कारण दाने-दाने के लिए मोहताज हो रहे अपनी प्रजा तक उनके अधिकारों को पहुंचाया।वीर नारायण सिंह की लड़ाई असमानता के खिलाफ थी, लेकिन अंग्रेजों ने उन पर देशद्रोह का मुकदमा चलाया और सजा दी। वीर नारायण सिंह को रायपुर स्थित जय स्तंभ चौक में 10 दिसम्बर को अंग्रेजों द्वारा फाँसी में चढ़ा दिया गया था। उन्हें 1857 की क्रांति में छत्तीसगढ़ के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम सेनानी होने का गौरव प्राप्त है। उनका बलिदान सदियों से संघर्ष, स्वाभिमान और अन्याय के प्रतिकार की प्रेरणा देता आया है। विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रोफेसर (डॉ.) के के अग्रवाल उपाध्यक्ष छत्तीसगढ़ इतिहास परिषद एवं पूर्व प्रोफेसर इतिहास, प्रोफेसर (डॉ.) बी एल सोनकर अध्यक्ष अर्थशास्त्र अध्ययन शाला उपस्थिति रहे।
इस अवसर पर इतिहास अध्ययन शाला पंडित रविंशकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर के छात्रों द्वारा किए गए खेलकूद गतिविधियों का आयेाजन तथा भाषण प्रतियोगिता, गीत, रंगोली प्रतियोगिता का आयंाजन किया और विजयी प्रतिभागियों को अतिथियों के द्वारा प्रमाण पत्र प्रदान कर सम्मानित किया गया। इस अवसर पर अतिथियों (डॉ.) डी एन खूटे सह-प्राध्यापक तथा आभार प्रदर्शन (डॉ.) बसों नूरूटि सह-प्राध्यापक, श्रीमती (डॉ.)सीमापाल, (डॉ.)उदय अडाउ, (डॉ.) दिप्ती वर्मा के अलावा शोधार्थी, विभाग के विद्यार्थियों ने वीर नारायण सिंह के योगदान विषय पर परिचर्चा में भाग लिया। कार्यक्रम का संचालन शोधार्थी गोल्डी राज एक्का ने किया। इस अवसर पर इतिहास अध्ययन शाला पंडित रविंशकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर के शोधार्थी, छात्र-छात्राएं बडी संख्या में उपस्थित रहे।
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