रायपुर, 13 जुलाई 2025 : छत्तीसगढ़ की जनजातीय संस्कृति, परंपरा और जीवनशैली पर आधारित जनजातीय संग्रहालय का केन्द्रीय जनजातीय राज्य मंत्री श्री दुर्गा दास उइके ने अवलोकन किया और नवा रायपुर में बनाए गए इस संग्रहालय में आदिवासी जीवन शैली के प्रस्तुतीकरण की सराहना की। उन्होंने कहा कि इस संग्रहालय के जरिए छत्तीसगढ़ की सांस्कृति विरासत विश्व पटल पर स्थापित होगी। इससे जनजातीय युवाओं में अपनी संस्कृति के प्रति आत्मगौरव का भाव जगेगा। इस अवसर पर आदिम जाति, अनुसूचित जाति एवं पिछड़ा वर्ग मंत्री श्री राम विचार नेताम भी उपस्थित थे।
केन्द्रीय जनजातीय राज्यमंत्री श्री दुर्गादास ने कहा कि केन्द्र सरकार द्वारा जनजातीय वर्ग के हित में अनेक योजनाएं संचालित की जा रही हैं। पीएम जनमन एवं धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान के माध्यम से जनजातियों के संर्वागीण विकास के प्रयास किए जा रहे हैं। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्री मोदी के 2047 तक विकसित भारत की संकल्पना में यह प्रयास मील का पत्थर साबित होंगे।
उन्होंने संग्रहालय के निकट ही बनाए जा रहे शहीद वीर नारायण सिंह आदिवासी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्मारक सह संग्रहालय के निर्माण की समीक्षा की। इस संग्रहालय के लिए केन्द्र सरकार ने 45 करोड़ रूपए की राशि मंजूर की है। इस संग्रहालय को आगामी 30 सितम्बर तक पूर्ण करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। प्रमुख सचिव श्री बोरा ने इस दौरान संग्रहालय में प्रयुक्त डिजीटल एवं एआई तकनीक के संबंध में जानकारी दी। बैठक में टीआरटीआई के संचालक श्री जगदीश कुमार सोनकर सहित विभागीय अधिकारी उपस्थित थे।
संग्रहालय में 14 गैलरियों में जनजातीय जीवनशैली के विभिन्न अवसरों का है झलकियां
जनजातीय संग्रहालय में जनजातीय संस्कृति, जीवनशैली और परंपरा को प्रदर्शित करने के लिए 14 गैलरियों का निर्माण किया गया है। संग्रहालय के अलग-अलग गैलरियों में जनजातीयों के परंपरागत वाद्ययंत्रों, आवास एवं घरेलू उपकरण, शिकार उपकरण, उनमें कृषि की परंपरागत तकनीकें एवं उपकरणों का जीवंत प्रदर्शन किया गया है।
इसी प्रकार लौह निर्माण, रस्सी निर्माण, फसल मिंजाई, कत्था निर्माण, चिवड़ा-लाई निर्माण, मंद आसवन, अन्न कुटाई व पिसाई, तेल प्रसंस्करण हेतु उपयोग में लाने जाने वाले उपकरणांे व परंपरागत तकनीकों को दर्शाया गया है। संग्रहालय में सांस्कृतिक विरासत के अंतर्गत अबुझमाड़िया में गोटुल, भुंजिया जनजाति में लाल बंगला, जनजातियों में परम्परागत कला कौशल जैसे बांसकला, काष्ठकला, चित्रकारी, गोदनाकला, शिल्पकला आदि प्रदर्शित किए गए हैं।
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