रांची 04 अगस्त 2025 (SHABD): झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक, झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री और राज्यसभा सांसद दिशोम गुरु शिबू सोरेन का निधन इलाज के दौरान दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में हो गया। 81 साल की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली। इसकी जानकारी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर देते हुए लिखा कि गुरुजी हम सबको छोड़कर चले गए, आज मैं शून्य हो गया हूं। वहीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, राज्यपाल संतोष कुमार गंगवार समेत अन्य लोगों ने गुरुजी के निधन पर दुख जताया है।
राज्यसभा में भी उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए राज्यसभा की कार्रवाई कल तक के लिए स्थगित कर दी गई। वहीं झारखंड विधानसभा मॉनसून सत्र के दौरान शोक संवेदना प्रकट करते हुए सदन की कार्रवाई को अनिश्चितकालीन अवधि के लिए स्थगित कर दिया गया है। राज्य में तीन दिनों का राजकीय शोक की घोषणा की गई है, इस अवधि में राज्य के सरकारी कार्यालय बंद रहेंगे। लंबे समय से किडनी की बीमारी और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहे गुरुजी शिबू सोरेन को 19 जून 2025 को दिल्ली के सर गंगाराम अस्पताल में भर्ती कराया गया था। इसी दौरान उन्हें ब्रेन स्ट्रोक हुआ और उनकी हालत बिगड़ गयी। हालांकि, इलाज के दौरान उनकी स्थिति में सुधार हुआ था। काफी दिनों तक वेंटिलेटर पर रहने के बाद उन्होंने आज अंतिम सांस ली। उनके निधन की खबर से झारखंड में शोक की लहर है।
गुरुजी शिबू सोरेन का जन्म 11 जनवरी 1944 को रामगढ़ जिले के नेमरा गांव में हुआ था। उनके पिता सोबरन सोरेन शिक्षक थे। महाजनों के द्वारा उनकी हत्या के बाद शिबू सोरेन पढ़ाई छोड़कर गांव आ गये। आदिवासी समाज को एकजुट करना शुरू किया। 1970 के दशक में उन्होंने राजनीति में कदम रखा और आदिवासियों के हक के लिए संघर्ष शुरू किया। दिशोम गुरु ने 4 फरवरी 1973 को बिनोद बिहारी महतो और ए.के.राय के साथ मिलकर झारखंड मुक्ति मोर्चा की स्थापना की, जिसने अलग झारखंड राज्य के आंदोलन को गति दी। झामुमो और आजसू के आंदोलन के परिणामस्वरूप 15 नवंबर 2000 को बिहार से अलग होकर झारखंड राज्य का गठन हुआ।
गुरुजी को झारखंड आंदोलन का जनक माना जाता है। उनके योगदान को पूरे देश में सम्मान की नजर से देखा जाता है। झामुमो सुप्रीमो को उनके समर्थक प्यार से ‘गुरुजी’ कहते थे। उन्होंने महाजनों और सूदखोरों के खिलाफ आदिवासियों को एकजुट किया। धनकटनी आंदोलन जैसे अभियानों के जरिये सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ी। उनकी सादगी और जनता के प्रति समर्पण ने उन्हें झारखंड की राजनीति में एक विशेष स्थान दिलाया। उनके नेतृत्व में झारखंड मुक्ति मोर्चा राज्य की सियासत में एक मजबूत ताकत के रूप में उभरी।
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