तकनीक का बढ़ता प्रभाव और भविष्य में शिक्षक की भूमिका

डॉ सुधीर शर्मा, अध्यक्ष, हिंदी एवं पत्रकारिता विभाग, कल्याण स्नातकोत्तर महाविद्यालय भिलाई छत्तीसगढ़

रायपुर। हम एक ऐसे युग में खड़े हैं जहाँ तकनीक ने शिक्षा, समाज और मानव जीवन के हर पहलू को छू लिया है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता, रोबोटिक्स, वर्चुअल रियलिटी, ऑनलाइन लर्निंग और डिजिटल संसाधनों ने ज्ञान के नए द्वार खोल दिए हैं। परंतु इस तेज़ रफ़्तार युग में एक सवाल बार-बार उभरता है—क्या तकनीक ही सब कुछ है?
मनुष्य ने मशीनें बनाई हैं, लेकिन क्या मशीनें मनुष्य बना सकती हैं? यही वह बिंदु है जहाँ शिक्षक की भूमिका केवल पढ़ाने तक सीमित नहीं रहती, बल्कि वह चेतना के वाहक और आध्यात्मिक मार्गदर्शक बन जाते हैं। तकनीक और ज्ञान का विस्तार

वेदों में कहा गया है—

“सर्वं खल्विदं ब्रह्म” — यह समस्त ब्रह्मांड ज्ञानमय है।
आज इंटरनेट और डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म उस ज्ञान के विस्तृत स्रोत बन चुके हैं। विद्यार्थी एक क्लिक में विश्वभर की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। लेकिन यहाँ एक गहरी सच्चाई है—सूचना (Information) और ज्ञान (Wisdom) में अंतर है।
तकनीक हमें तथ्यों की बाढ़ दे सकती है।परंतु सही-असली-झूठे में अंतर करना, मूल्य आधारित सोच विकसित करना, और जीवन की दिशा तय करना—यह सब केवल चेतन शिक्षक की भूमिका से संभव है।

शिक्षक की आध्यात्मिक भूमिका

प्राचीन भारतीय परंपरा में गुरु को केवल शिक्षक नहीं, बल्कि दीपक कहा गया है।
“गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परं ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः॥”
इसका अर्थ है—गुरु सृष्टि का सर्जक भी है, पालनकर्ता भी, और संहारक भी। वह अज्ञान के अंधकार को नष्ट करके जीवन में प्रकाश लाता है।
भविष्य के डिजिटल युग में जब मशीनें तथ्यों की व्याख्या करेंगी, तब भी मानव जीवन का उद्देश्य, मूल्य, संवेदना और आत्मिक उत्थान शिक्षक के माध्यम से ही संभव होगा।

तकनीक बनाम चेतना

कृत्रिम बुद्धिमत्ता सोच सकती है, परंतु महसूस नहीं कर सकती।
वर्चुअल रियलिटी अनुभव करा सकती है, परंतु अनुभूति नहीं जगा सकती।
डेटा तथ्य बता सकता है, परंतु सत्य नहीं समझा सकता।
यही वह सीमा है जहाँ शिक्षक का महत्व सर्वोपरि हो जाता है। शिक्षक केवल ज्ञान का हस्तांतरण नहीं करता, बल्कि वह विद्यार्थियों के हृदय को छूता है, आत्मबोध कराता है और संस्कारों की ज्योति प्रज्वलित करता है।
भविष्य के शिक्षक की नई पहचान

आने वाले समय में जब हर विद्यार्थी के पास AI-आधारित निजी सहायक होगा, तब शिक्षक की भूमिका और भी गहन हो जाएगी। वह सूचना प्रदाता नहीं, बल्कि चेतना जाग्रत करने वाला होगा वह मशीनों से आगे बढ़कर मानवीय मूल्यों का संरक्षक बनेगा। वह छात्रों को केवल “कैसे पढ़ना है” नहीं, बल्कि “क्यों पढ़ना है” का बोध कराएगा।

महर्षि अरविन्द ने कहा था:

“शिक्षा का उद्देश्य केवल जानकारी भरना नहीं, बल्कि आत्मा के सामर्थ्य को जागृत करना है।”
भविष्य का शिक्षक इसी वाक्य का सजीव रूप होगा।

आध्यात्मिक दृष्टि से शिक्षा

भारत की शिक्षा परंपरा हमेशा से केवल सूचना देने की नहीं, बल्कि संपूर्ण व्यक्तित्व के निर्माण की रही है।प्राचीन गुरुकुलों में शिक्षा का उद्देश्य था ज्ञान + विवेक + मूल्य। आज की तकनीक-प्रधान शिक्षा में यदि शिक्षक इस समन्वय को न साधे, तो विद्यार्थी केवल मशीन-समान सूचना वाहक बनकर रह जाएगा। शिक्षक को चाहिए कि वह तकनीक को सहयोगी बनाए, प्रतिस्पर्धी नहीं।
जहाँ मशीनें बुद्धि विकसित करेंगी, वहीं शिक्षक विवेक विकसित करेंगे। जहाँ तकनीक प्रक्रिया सिखाएगी, वहीं शिक्षक प्रयोजन सिखाएंगे।

तकनीक ज्ञान तक पहुँच देती है, परंतु जीवन की दिशा नहीं।
कृत्रिम बुद्धिमत्ता समाधान दे सकती है, परंतु संवेदनाएँ नहीं।
इसीलिए भविष्य का शिक्षक वह दीपक होगा, जो विद्यार्थियों के भीतर छिपे सत्य, सौंदर्य, प्रेम और विवेक को जाग्रत करेगा।
महात्मा गांधी ने कहा था:
“शिक्षा का उद्देश्य केवल अच्छे अंक लाना नहीं, बल्कि अच्छे इंसान बनाना है।”

भविष्य का आदर्श शिक्षक वही होगा जो तकनीक की शक्ति और मानवीय चेतना के बीच संतुलन स्थापित करके विद्यार्थियों के जीवन में प्रकाश भर सके।

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