छत्तीसगढ़ के रंग देखिये मेरे संग:प्रागैतिहासिक काल के रहस्यों की साक्षी कंक ऋषि की नगरी कांकेर

फोटो और आलेख ज्ञानेंद्र पांडेय, वाइल्डलाइफ फोटोग्राफर

इतिहास वेत्ताओं तथा स्थानीय जानकारों के अनुसार कांकेर नगर प्राचीनकाल से ऋषियों की शरणस्थली था। कांकेर को कंक, लोमश, अंगीरा एवं श्रृंगी ऋषि की तपोभूमि माना जाता है। कांकेर पर आधिपत्य को लेकर समय समय में अनेक संघर्ष हुए यही कारण है कि कांकेर का इतिहास अनेक संघर्षों का साक्षी रहा। संक्षिप्त में अध्ययन से यह ज्ञात होता है कि लगभग छठी शताब्दी पूर्व यहाँ बौद्ध धर्म का प्रभाव रहा। 106 ई. में यह सातवाहन राजवंश के अधीन था उसके बाद कांकेर राज्य नाग, वाकाटक, नल वंश आदि के आधिपत्य में रहा। कालांतर में यहाँ सोमवंशीय राजाओं फिर मराठों उसके पश्चात्त अंग्रेजों का राज था। कांकेर की भौगोलिक स्थिति और प्राप्त प्रमाणों से यह किसी रहस्यलोक जैसा जान पड़ता है, जिसके सम्बन्ध में खोज तथा अध्ययन की आवश्यकता है। आइये मेरे संग और जानिए कांकेर के बारे में

गढ़िया पहाड़
पहाड़ियों से घिरे कांकेर के दक्षिण में गढ़िया पहाड़ नामक पहाड़ अपने ऐतिहासिक साक्ष्यों एवं लोमहर्षक किंवदंतियों के कारण अत्यंत प्रसिद्ध है। यह स्थान पूर्व में सोम, कण्डरा तथा चंद्रवंशी राजाओं का गढ़ अर्थात किला रहा है। प्राकृतिक रूप से अभेद्य गढ़ (किला) होने के कारण इसका नाम गढ़िया पहाड़ पड़ा। प्रारम्भ में इस गढ़ तक पहुँचने के लिए वर्तमान के भंडारीपारा एवं ग्राम गढ़पिछवाड़ी की ओर से कच्चा मार्ग था। 1952 के पश्चात् इस पहाड़ पर चढ़ने के लिए एक नए मार्ग की खोज हुई, यह मार्ग राजापारा स्थित बालाजी मंदिर की बायीं ओर से ऊपर की ओर जाता है।

गढ़िया पहाड़ स्थित विशिष्ट स्थलों में सिंहद्वार, टुरी हटरी, मृत्युदंड स्थल, होलिका दहन स्थल, जोगी गुफा, खजाना पत्थर, छुरी पगार, सोनई – रुपई तालाब आदि प्रमुख है। वर्तमान में गढ़िया पहाड़ में महाशिवरात्रि तथा नवरात्रि पर्व पर श्रद्धालुओं का मेला लगता है, लोग दूर दूर से इस अभेद्य किले का इतिहास तथा प्राकृतिक सौंदर्य को देखने आते हैं। वन विभाग द्वारा गढ़िया पहाड़ के कुछ स्थलों पर पूरा उत्खनन का कार्य किया जा रहा है जिसमें प्रागैतिहासिक काल के साक्ष्य मूर्तियां एवं मुद्राएं प्रमुख रूप से प्राप्त हुईं है।

गढ़िया पहाड़ स्थित खजाना पत्थर
“पहाड़ में एक स्थान पर जहाँ राजा का महल होना माना जाता है, एक विशाल ऊंचा पत्थर है जो देखने में किसी सुरक्षित आलमारी जैसा प्रतीत होता है जिसमें पत्थर का ही दरवाजा बना हुआ है। किंवदती है कि इस पत्थर के नीचे राजा अपना खजाना छुपा कर रखता था इसीलिए इसका नाम खजाना पत्थर हैं।”

सोनई रुपई तालाब
गढ़िया पहाड़ में दो तालाब है जिसकी कहानी अत्यंत ही रोचक है। जनश्रुति के अनुसार करीब 700 वर्ष पूर्व गढ़िया पहाड़ पर धर्मदेव नामक एक राजा हुआ करता था, राजा ने अपनी दो बेटियों सोनई तथा रुपई के नाम पर इन तालाबों का निर्माण कराया। दोनों बहनें इन तालाबों के किनारे खेला करती थीं परन्तु एक दिन दुर्भाग्यवश दोनों बहनों की तालाब में डूबकर मृत्यु हो गयी। माना जाता है कि सोनई-रुपई की आत्माएं अब भी इस तालाब की रक्षा करती हैं। पहाड़ पर होने के बाद भी इन दोनों तालाबों का पानी कभी नहीं सूखता तथा इस तालाब की विशेषता यह है कि सुबह और शाम के वक्त इसका आधा पानी सोने और आधा चांदी की तरह चमकता है, इस तरह पानी का सोने-चांदी की तरह चमकना सोनई-रुपई के यहां मौजूद होने के प्रमाण के रूप में देखा जाता है।

मिलते हैं अगले अंक में गढ़िया पहाड़ की कुछ और दिलचस्प कहानियों के साथ तब तक जय जोहार